Thursday, October 29, 2009

हमने कहा उससे अब न जावो
थोरी देर और रुक जावो फिर निकल जाना,
वो हमारी सुना कब, जो तब सुन लेता
बस इन्तज़ार में निगाहे आज भी बिझाये हैं
आहात किशी की भी हो लगता हे दुस्तक होगी दरवाज़े पर मेरी
आवोगे तो खेलोगे आँख मिचोली
झुप के आँचल में सो जाना ,लोरी मुझसे फिर गवाना
सामने आवोगे तो सर चूम लेंगे
कभी प्यार कभी गुस्सा सह लेंगे
लेकिन तुम तो जा चुके हो बरी दूर ,
जहा जाने का रास्ता तो पता हैं सभी को ,
लेकिन वह से आना हैं केसे आज भी नहीं मालूम
माँ ये बेचारी फक्र जताती हे ,जब लोग तुम्हे अमर कहते हैं
चुप चाप रो लेती हे और यादो में ही तुम्हे बहो में भर लेती हे
लौट आवोगे मेरा मन कहता हे बार बार
दरवाज़े पर ही रहती हे आँखे,
दिल को अभी भी हे तेरा इन्तज़ार.......
(एक माँ जिसका बेटा ळर्ते२ अमर होता हे)

3 comments:

"अर्श" said...

ashcharyachakit hun aaj aapke lekhan se... adbhoot lekh badhaayee


arsh

Pushpendra Singh "Pushp" said...

acchi rachna
bahut abhar

Ravi Rajbhar said...

Bahut hi sunder..dil s likhi gai pyari si rachna...!